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📜 हिजरी कैलेंडर का इतिहास
1. इस्लाम से पहले का अरबी कैलेंडर
इस्लाम से पहले अरब लोग चाँद (चन्द्रमा) पर आधारित महीनों का इस्तेमाल करते थे।
लेकिन इसमें कोई स्थायी नियम नहीं था।
कई क़बीलों ने नसी (Nasīʾ) नामक प्रथा अपनाई थी, जिसमें वे महीनों को आगे-पीछे कर देते थे ताकि मौसम या व्यापार के हिसाब से समय बदला जा सके।
इससे महीनों और त्यौहारों में भ्रम पैदा होता था।
2. हिजरी कैलेंडर की शुरुआत
इस्लाम आने के बाद रोज़ा, हज, ज़कात जैसे धार्मिक कर्तव्यों के लिए एक व्यवस्थित कैलेंडर की ज़रूरत पड़ी।
638 ईस्वी (17 हिजरी) में ख़लीफ़ा हज़रत उमर इब्न अल-ख़त्ताब (रज़ि.) ने आधिकारिक तौर पर हिजरी कैलेंडर शुरू किया।
इस कैलेंडर की शुरुआत (Epoch), पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ﷺ की मक्का से मदीना की हिजरत (622 ईस्वी) को माना गया।
यह घटना इस्लाम के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसी से पहला इस्लामी समाज और राज्य स्थापित हुआ।
3. कैलेंडर की संरचना
हिजरी कैलेंडर एक पूर्ण चंद्र कैलेंडर है।
इसमें 12 महीने होते हैं और एक साल लगभग 354 या 355 दिन का होता है।
हर नया महीना नए चाँद (हिलाल) के दिखने से शुरू होता है।
यह ग्रेगोरियन (सौर) साल से छोटा होता है, इसलिए इस्लामी महीने हर साल लगभग 10–11 दिन पहले आ जाते हैं।
4. हिजरी कैलेंडर के 12 महीने
1. मुहर्रम
2. सफ़र
3. रबीउल अव्वल
4. रबीउल आखिर
5. जुमादा अल-ऊला
6. जुमादा अल-आखिर
7. रजब
8. शाबान
9. रमज़ान
10. शव्वाल
11. ज़िलक़ादा
12. ज़िलहिज्जा
इनमे से चार महीने पवित्र (हराम) महीने माने जाते हैं:
मुहर्रम, रजब, ज़िलक़ादा, ज़िलहिज्जा।
5. आज का महत्व
हिजरी कैलेंडर का इस्तेमाल मुख्य रूप से धार्मिक कार्यों में होता है:
रमज़ान के रोज़े रखने के लिए
हज अदा करने के लिए
ईद-उल-फ़ितर और ईद-उल-अज़हा जैसे त्यौहार मनाने के लिए
सऊदी अरब और कुछ अन्य मुस्लिम देशों में यह आधिकारिक (ऑफिशियल) कैलेंडर है।
भारत, पाकिस्तान आदि देशों में नागरिक कार्यों के लिए ग्रेगोरियन कैलेंडर चलता है, लेकिन धार्मिक कामों के लिए हिजरी कैलेंडर का ही पालन किया जाता है।
✅ संक्षेप में:
हिजरी कैलेंडर की शुरुआत 638 ईस्वी में ख़लीफ़ा उमर (रज़ि.) ने की। इसका आधार पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ की 622 ईस्वी की हिजरत (मक्का से मदीना) है। यह 12 महीनों वाला चन्द्र कैलेंडर है और आज भी मुस्लिम धार्मिक जीवन का आधार है।
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