बेनाम शायर💌✍️
Kanalga Telegram’da o‘tish
मेरे पोस्ट्स📩 एक नशे की तरह है एक बार आदत पड़ गई तो बिना पढ़े 📖 रह पाना मुश्किल होगा इशारो इशारो में अपनी बातें रखने का दम रखता हूँ मैं शायर📝 तो नही हूँ जनाब मगर सीधा दिल💖 मे कदम रखता हूँ Interact @Nameless_Poet_bot @status_point @nature_is_calling
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Kanal postlari
वो मोगरे का गजरा लगाकर, घर जब आई,
ऐसा लगा कि इत्र की शीशी, गिरकर फूट गई है..
@kataizaharila
1 035110
| 2 | मै पैरों मे सर रखकर भी मना लूंगा तुम्हे,
बस इतना ख्याल रखना मेरे झुकने पर तुम्हे गुरूर नही मेरा प्रेम महसूस हो।
@kataizaharila | 3 032 |
| 3 | हम फिर मिलेंगे
या नहीं!
इतना बता दो।
ताकि तय कर सकूँ मैं कि
केवल प्रेम ही करना है मुझे
या प्रतीक्षा भी ❤️
@kataizaharila | 3 927 |
| 4 | निगाह उठती है तेरी ओर जब-जब
मैं तुझमें अपना सब देखता हूँ
हाथ खाली हैं मेरे लकीरों से तो क्या
मैं तुझमें अपना रब देखता हूँ ❤️
@kataizaharila | 4 517 |
| 5 | चाहे कहने में सदियों की देरी हो
तुम जब कहना, कहना मेरी हो...
@kataizaharila | 4 591 |
| 6 | लफ्ज मै कितने भी ............. खूबसूरत लिख दूँ...
निखार तो तब आता है जब आप दिल से "उफ्फ" करते है..
💓💓
@kataizaharila | 4 525 |
| 7 | जिंदगी में तुम्हें ना समझने वाले इंसान से
अगर मोहब्बत हो जाए
तो समझ लेना बद्दुआ लगी है तुम्हें किसी चाहने वाले की....
@kataizaharila | 4 426 |
| 8 | मेरा प्रेम तुम्हारे लिए घर के बाहर बने स्वास्तिक के निशान जैसा है..
जो तुम्हारे लिए हमेशा मंगल कमाना करता है..
@kataizaharila | 4 062 |
| 9 | मैंने कभी तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं की या यूँ कहूँ की
मुझे इस राह पर कभी चलना ही नहीं था
किंतु जब तुम संयोगवश मेरे समक्ष आए
और बहुत ही सहजता से थाम लिया मेरा हाथ
फिर स्वयं में विलय कर मुझे खुद सा कर लिया
जैसे हमें एक दूसरे की सदियों से प्रतीक्षा हो
अब जब थाम ही लिया है इन हथेलियों को
तो मेरी कसमसाहट पर भी इन्हें ना छोड़ना
मैं लाख प्रयत्न करूँ तुमसे दूर जाने का
तुम अपनी बाहों की परिधि में मुझे समेट लेना...
@kataizaharila | 4 511 |
| 10 | पूछो ना
ये दीवानगी किसके लिए है
ये आवारगी किसके लिए है
सच कहूं तो मेरे हर सवाल का जवाब तुम हो
मैं शायर तेरे दम से मेरी शायरी का हिसाब तुम हो
मैं सूफी जिसे मिले हो तुम मजार की तरह
मेरे दिल के बगीचे के इकलौते गुलाब तुम हो
पूछो ना
सुरो मे ये ताजगी किसके लिए है
खुदा से भी अब नाराजगी किसके लिए है
सच कहूं तो तेरे बिना सब कुछ अंधेरी रात सा है
महफिलों का शोर भी गम भरे हालात सा है
हां तेरे होंटो पे कन्ही अटकी है जान मेरी
आज भी नशा मुझे अपनी पहली मुलाकात सा है
बताओ ना
चेहरे पे ये हैरानगी किसके लिए है
मेरी मोहब्बत की हर बानगी किसके लिए है
@kataizaharila | 4 117 |
| 11 | थोड़ा-थोड़ा मिलता रहे,
तेरा स्नेह मुझ पर यूँ ही बरसता रहे,
जैसे शीतल प्रभात में पत्तों पर ओस उतरती है,
वैसे ही तेरी मृदुता मेरे मन पर ठहरती रहे।
तेरे स्नेह की हर बूंद में एक शांति है,
जो भीतर की हलचल को मौन कर जाती है,
जैसे कोई अंजानी प्रार्थना बिना शब्दों के,
आत्मा को स्पर्श कर जाती है।
ना दूरी मिटे, ना निकटता बढ़े,
बस ऐसा ही संतुलन बना रहे,
जहाँ न चाह हो, न मोह का बंधन,
सिर्फ़ स्नेह का निस्सीम प्रवाह बहता रहे…
@kataizaharila | 3 493 |
| 12 | @kataizaharila | 3 247 |
| 13 | Jo bhi Krna chahta h is account no pe kr do ..
Kya pta apki choti si help kisi ki life bacha le ... ❤️ | 182 |
| 14 | Image to PDF 20251030 10.32.24.pdf | 174 |
| 15 | नमस्कार,
मैं अनिरुद्ध चन्द्रवंशी, उम्र 26 वर्ष, लंबे समय से लीवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहा हूँ।
मैं पिछले कुछ वर्षों से एमपीपीएससी की तैयारी कर रहा था,
परंतु स्वास्थ्य कारणों से अब आगे की तैयारी रुक गई है।
डॉक्टरों ने अब लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी है।
इस उपचार में ऑपरेशन से पहले और बाद का कुल खर्च लगभग ₹40 लाख तक आ रहा है।
मेरे पिता सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, और इतनी बड़ी राशि परिवार के लिए जुटाना कठिन है।
मैं आप सबसे विनम्र निवेदन करता हूँ कि यदि संभव हो तो इस कठिन समय में
थोड़ा-सा सहयोग देकर मेरे उपचार में मदद करें।
आपका सहयोग मेरे लिए जीवनदान के समान होगा। 🙏
Phone pe no.
9111646337
– अनिरुद्ध चन्द्रवंशी | 173 |
| 16 | एक इत्तेफाक हो,
एक रोज तुम साथ हो
सफर हो थोड़ी दूर तक का
और हाथों में तुम्हारा हाथ हो
नज़रें देखकर तुम्हें गाएं गज़ल
ज़ुबा खामोश होकर भी
कह जाए मन की हलचल
सच कहूँ तो गुजर जाए ये उम्र
पर गुजरे न ये सफर।
❤
@kataizaharila | 3 890 |
| 17 | विकल होकर मैं जिधर भी देखता हूँ प्रियतमा
मेरे नयन बस तुमको ही हैं ढूंढ़ते रात-दिन
गीत तो हैं बहुत स्मृति में मेरे मगर
होंठ मेरे बस तुम्हे ही हैं पूछते रात-दिन ❤️
@kataizaharila | 3 512 |
| 18 | सुनो, पारिजात के खिलने से पहले ही याद आ जाती तुम्हारी हर बात, तुम्हारे साथ गुजरे अक्टूबर की कोमल नर्म सांझ, बादलों के आंचल से बाहर झांकता चमकीला चांद, और मेरे उंगलियों में उलझा तुम्हारा प्रगाढ़ हाथ..
सुनो इस बार मिलो तो इतना लिखना कि मैं चांद से लेकर सुबह की भोर, पारिजात के बिखरने तक बस तुम्हें पढ़ता रहूं..
@kataizaharila | 3 449 |
